मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा महाकाल मंदिर में सपरिवार पूजन

मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा महाकाल मंदिर में सपरिवार पूजन

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मानवता के कल्याण और सिंहस्थ महापर्व निर्विघ्न सम्पन्न होने के उद्देश्य से सपरिवार उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मन्दिर में देव-दर्शन कर पूजन-अर्चन किया। उन्होंने कहा कि सिंहस्थ महापर्व सब मिल-जुल कर मनायें। मुख्यमंत्री ने दर्शन के बाद श्री ओंकारेश्वर, श्री सिद्धिविनायक तथा साक्षी गोपाल के दर्शन भी किये।

मुख्यमंत्री ने सपरिवार महन्त श्री प्रकाशपुरी जी से आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसादी ग्रहण की। उन्होंने महन्तश्री से कहा कि आपकी कृपा बनी रहे। महन्त श्री प्रकाशपुरी ने कहा कि राज्य सरकार ने सिंहस्थ महापर्व के सफल आयोजन के लिये बहुत अच्छी व्यवस्थाएँ और विकास के बहुत काम किये हैं। महाकाल ही सिंहस्थ को निर्विघ्न सम्पन्न करवायेंगे, ऐसी ईश्वर से कामना है। महन्तश्री ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वे 18 अप्रैल को महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई में समय निकालकर अवश्य आयें। इस दौरान मुख्यमंत्री के साथ प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्रसिंह, स्कूल शिक्षा मंत्री श्री पारस जैन, विधायक श्री सतीश मालवीय, उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री जगदीश अग्रवाल आदि उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री ने आव्हान अखाड़े के भवन को कर-मुक्त करवाने की घोषणा की

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने अखाड़ा-स्थल पहुँच कर सन्तों से सपत्नीक आशीर्वाद लिया

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन के ग्राम सदावल स्थित श्री पंचदशनाम आव्हान अखाड़ा के नव-निर्मित भवन को नगर निगम कर से मुक्त करवाने की घोषणा की। मुख्यमंत्री से अखाड़े के साधु-समाज ने नव-निर्मित भवन को टेक्स मुक्त करवाने का आग्रह किया था। मुख्यमंत्री ने आग्रह को स्वीकार करते हुए मौके पर ही भवन को कर-मुक्त करवाने की घोषणा की। इस पर साधु-समाज ने हर्ष व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री को तहेदिल से आशीर्वाद दिया। इसके पूर्व साधु-सन्तों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पुष्पहारों से मुख्यमंत्री का स्वागत किया। इस अवसर पर आव्‍हान अखाड़े के सभापति श्रीमहन्त अमर शब्दानंदपुरी, महामंत्री सत्यगिरि, महन्त जय-विजय भारती सहित बड़ी संख्या में सन्त और महन्त उपस्थित थे।

आव्हान अखाड़े के बाद मुख्यमंत्री श्री पंच अग्नि अखाड़ा स्थल पहुँचे, जहाँ सन्त-समाज ने अखाड़े में अब तक हुए विकास व निर्माण कार्यों के लिये मुख्यमंत्री को साधुवाद दिया। इस दौरान अग्नि अखाड़े के सभापति श्रीमहन्त ब्रह्मचारी गोपालानंद, महामंत्री गोविंदानंद ब्रह्मचारी, श्रीमहन्त लालबाबा, स्वामी मुक्तानंद सहित काफी संख्या में अखाड़े के साधु-सन्त उपस्थित थे। श्री चौहान ने दोनों अखाड़ों के सन्त-महन्त एवं साधुओं से सपत्नीक आशीर्वाद प्राप्त किया। अखाड़ों के भ्रमण के दौरान प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्रसिंह, अखिल भारती अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री नरेन्द्रगिरि और अधिकारी मौजूद थे।

सिंहस्थ के लिये बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा ई-गेलरी निर्माण शुरू

सिंहस्थ के लिये बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा ई-गेलरी निर्माण शुरू

उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई तक होने वाले सिंहस्थ के लिये मेला क्षेत्र में बैंकों द्वारा लगातार कार्य किये जा रहे हैं। सिंहस्थ के दौरान एटीएम, मोबाइल एटीएम, डेबिट-कार्ड, पाइंट ऑफ सेल मशीन, सिक्का वितरण मशीन, फॉरेन एक्सचेंज जैसी कई सुविधा श्रद्धालुओं को उपलब्ध करवायी जायेंगी। इसके लिये बैंकों द्वारा भू-खण्डों पर ई-गेलरी का निर्माण किया जा रहा है। बैंक ऑफ इण्डिया ने ई-गेलरी का निर्माण शुरू कर दिया है। गेलरी मंगलनाथ जोन के खाक चौक में बनायी जा रही है।

ई-गेलरी में कई विशेषताएँ होंगी। इनमें एटीएम, डिपाजिट मशीन, क्वाइन डिस्पेंसर मशीन होगी। सिंहस्थ मेला क्षेत्र में 20 बैंक द्वारा श्रद्धालुओं को बैंकिंग सुविधा दी जायेगी। मेला क्षेत्र में 12 चलित मोबाइल एटीएम वाहन संचालित किये जायेंगे। बैंकों द्वारा पूरे मेला क्षेत्र में 35 एटीएम स्थापित किये जा रहे हैं। इतने ही एटीएम मेला क्षेत्र से लगे महाकाल, हर-सिद्धि, काल-भैरव, भैरवगढ़, रामघाट इत्यादि क्षेत्र में भी संचालित होंगे।

उज्जैन में बने वर्ल्ड रिकार्ड हुए प्रमाणित

उज्जैन में सिंहस्थ के मद्देनजर इस वर्ष 24 जनवरी को क्षीरसागर मैदान में फैमिली हेरीटेज वॉक और 26 जनवरी को साइक्लोथॉन का आयोजन किया गया था। फैमिली हेरिटेज वॉक में शहर के 6300 नागरिक ने सहभागिता करते हुए 2 किलोमीटर की वॉक की थी। इसी तरह 26 जनवरी, 67वें गणतंत्र दिवस पर साइक्लोथॉन का आयोजन किया गया था। आयोजन में साइकिल पर ग्रीन उज्जैन-क्लीन उज्जैन का संदेश लेकर नागरिक शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए कार्तिक मेला ग्राउण्ड पहुँचे थे। इन दोनों कार्य के लिये पूर्व में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड की ओर से प्रोवीजनल प्रमाण-पत्र प्रदान कर दिये गये थे। अब गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड की कमेटी ने वीडियो रिकार्डिंग देखने के बाद इसकी अधिकारिक पुष्टि कर दी है।

मुख्यमंत्री द्वारा उज्जैन में 363 करोड़ से अधिक लागत के पेयजल, सड़क और पुल का लोकार्पण

मुख्यमंत्री द्वारा उज्जैन में 363 करोड़ से अधिक लागत के पेयजल, सड़क और पुल का लोकार्पण

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज उज्जैन में सिंहस्थ-2016 के निर्माण कार्यों का अवलोकन किया। उन्होंने 363 करोड़ 49 लाख की लागत के पेयजल कार्य, सड़क, पुल का लोकार्पण किया।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने चक्रतीर्थ पर चार पुल और दो सड़क के साथ ही रामघाट से दत्त अखाड़े को जोड़ने वाले रपटा के नवीनीकरण और मंगलनाथ फोर लेन पर सेन्ट्रल लाइटिंग का लोकार्पण किया।

मुख्यमंत्री ने इस मौके पर मंगलनाथ से कमेड़ मार्ग पीलिया खाल नाले पर 5 करोड़ 57 लाख की लागत से बने पुल का उदघाटन किया। पुल के निर्माण से आगर एवं मक्सी से आने वाले यात्रियों को सुविधा होगी। साथ ही 9 करोड़ 81 लाख की लागत के ओखलेश्वर घाट से विक्रान्त भैरव मन्दिर को जोड़ने क्षिप्रा नदी पर नव-निर्मित पुल, बड़े पुल के पास क्षिप्रा सेतु के समानान्तर 8 करोड़ 51 लाख की लागत से चक्रतीर्थ के समीप निर्मित अतिरिक्त पुल तथा ऋणमुक्तेश्वर से रणजीत हनुमान मार्ग के मध्य क्षिप्रा पर नव-निर्मित पुल का भी श्री चौहान ने लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने करीब 5 करोड़ की लागत से निर्मित रामघाट से मुल्लापुरा फोर-लेन रोड एवं 19 करोड़ 26 लाख की लागत से बनी मकोड़िया आम खाकचौक से मंगलनाथ फोर-लेन सी.सी. रोड मय सेन्ट्रल लाइटिंग तथा 32 लाख की लागत से रामघाट से दत्त अखाड़े को जोड़ने वाले नये रपटा का उदघाटन किया।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकार्पण से पूर्व क्षिप्रा के सुनहरी घाट पर त्रिवेणी के पौधे का रोपण किया। मुख्यमंत्री ने क्षिप्रा किनारे पहुँचकर नदी का अवलोकन भी किया।

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मुख्यमंत्री श्री चौहान ने गऊघाट जल यंत्रालय पर सिंहस्थ-2016 में पेयजल व्यवस्था के लिये 41 करोड़ 89 लाख की लागत के बारह कार्य लोकार्पित किये। इससे उज्जैन शहर में प्रदाय किये जाने वाले जल की जल-शोधन क्षमता दुगनी हो गई है। सिंहस्थ के दौरान 161 एमएलडी प्रतिदिन जल वितरण की क्षमता विकसित हो गयी है। उल्लेखनीय है कि 11 करोड़ की लागत से गऊघाट जल-शोधन संयंत्र से त्रिवेणी तक 500 एवं 150 मिमी व्यास डीआई पाइप लाइन बिछाई गई है। इससे सिंहस्थ के बाद भी शहर के लिये नर्मदा-क्षिप्रा लिंक के पानी का उपयोग किया जा सकेगा और भविष्य में कभी जल संकट नहीं होगा।

मुख्यमंत्री ने 6 करोड़ 17 लाख रूपये के वरूणालय जल-शोधन संयंत्र एवं सम्बन्धित अवयव का निर्माण, गऊघाट जल यंत्रालय से गुदरी स्थित उच्च-स्तरीय पानी की टंकी तक 500 मिमी व्यास डीआई पाइप लाइन बिछाने के लिये 1 करोड़ 74 लाख के कार्य, 4 करोड़ लागत के जल-शोधन संयंत्रों एवं पम्पिंग स्टेशन के उन्नयन कार्य का उदघाटन किया। उन्होंने 5 करोड़ 40 लाख की लागत से आठ एमएलडी जल्पेश्वर जल-शोधन संयंत्र, 74 लाख 90 हजार रूपये की लागत से गढ़कालिका क्षेत्र में उच्च-स्तरीय पानी की टंकी का निर्माण, एक करोड़ 57 लाख रूपये की लागत से वरूणालय जल-शोधन संयंत्र से चिन्तामन गणेश तक पाइप लाइन बिछाने का कार्य एवं 150 किलो लीटर क्षमता की 15 मीटर ऊँचाई की उच्च-स्तरीय पानी की टंकी का निर्माण और पौने दो करोड़ की लागत से उंडासा पर वर्तमान जल-शोधन संयंत्र के उन्नयन कार्य का लोकार्पण किया।

मुख्यमंत्री ने मंगलनाथ सिंहस्थ मेला क्षेत्र में करीब 2 करोड़ की लागत से 600 किलो लीटर क्षमता की उच्च-स्तरीय टंकी का निर्माण और 300 मिमी व्यास डीआई पाइप लाइन बिछाने का कार्य, उजड़खेड़ा बड़नगर रोड मेला क्षेत्र में 81 लाख की लागत से 250 किलो लीटर क्षमता की उच्च-स्तरीय पानी की टंकी का निर्माण एवं 2500 एमएम पाइप लाइन बिछाने का कार्य, 11 करोड़ की लागत से गऊघाट जल-शोधन संयंत्र से त्रिवेणी तक 500 एवं 150 मिमी व्यास डीआई पाइप लाइन बिछाने का कार्य, 4 करोड़ 36 लाख की लागत से गंभीर नदी पर 12 मीटर व्यास और 20.50 मीटर गहराई के इंटेक वेल का निर्माण तथा सिंहस्थ मेला क्षेत्र में भैरवगढ़ टंकी के पास 885 किलो लीटर क्षमता के सम्पवेल, पम्प हाऊस एवं सब-स्टेशन का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने जल-शोधन संयंत्र का अवलोकन भी किया।

जयसिंह पुरा बदल मार्ग लोकार्पित

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने उज्जैन में चिंतामन गणेश मार्ग पर 39 करोड़ 18 लाख की लागत से निर्मित जयसिंह पुरा बदल मार्ग को लोकार्पित किया। इस ब्रिज की लम्बाई 1234.45 मीटर तथा चौड़ाई 12 मीटर है। इस मौके पर प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह, सांसद डॉ. चिन्तामणि मालवीय, सिंहस्थ केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष श्री माखन सिंह, विधायक डॉ. मोहन यादव और श्री अनिल फिरोजिया उपस्थित थे।

सिंहस्थ में साधु-संतों को मिल रही ऊबड़-खाबड़ जमीन

सिंहस्थ में साधु-संतों को मिल रही ऊबड़-खाबड़ जमीन

आशुतोष कुमार (भोपाल)। उज्जैन में सम्पन्न होने वाले सिंहस्थ के पूर्व देशभर के साधु-संतों का यहां आने का सिलसिला शुरू हो गया है तो वहीं शासन द्वारा इन साधु-संतों के लिये स्थान उपलब्ध कराये जाने की भी व्यवस्था की जा रही है लेकिन इसी बीच साधु-संतों में मप्र सरकार द्वारा दी जाने वाली भूमि आवंटन को लेकर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं, चर्चा के दौरान कुछ संतों ने बताया कि मप्र सरकार साधु संतों को जो जमीन आवंटन कर रही है वह ऊबड़-खाबड़ है और इसका समतलीकरण नहीं किया जा रहा है, जबकि प्रदेश भाजपा सरकार भगवान राम और भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने का दावा करती है एक साधु ने तो यहां तक कहा कि जबकि इलाहाबाद में सम्पन्न होने वाले कुंभ के दौरान अखिलेश सरकार द्वारा जो साधु-संतों को उनके अखाड़ों को रहने की व्यवस्था के लिये जमीन आवंटित की जाती है, सरकार द्वारा उसका समतलीकरण कराकर चारों तरफ से बाउण्ड्री बनाकर दी जाती है जबकि मध्यप्रदेश में ऐसा कहीं भी नहीं दिखाई दे रहा है वहीं एक दूसरे संत ने कहा कि मुझे राजनीति से कोई लेना देना है न ही संतों को राजनीति से कोई लगाव है मगर बात जब निकली तो कहना ही पड़ेगी कि भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य राजनीतिक दल के लोग उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम के नाम से पुकारने में कोई परहेज नहीं करते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि जहां भगवान राम और भारतीय संस्कृति का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा की सरकार साधु-संतों को ऊबड़-खाबड़ जमीन उपलब्ध करा रही है तो इसकी तुलना में वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश की सरकार द्वारा साधु-संतों को जो जमीन आवंटित कराई जाती है उसका पूरा समतलीकरण दिया जाता है, इस बात को लेकर साधु-संतों में रोष भी व्याप्त है, तो वहीं इस तरह की चर्चा भी चल रही है कि क्या प्रदेश में उसी भाजपा की सरकार है जो साधु-संतों और भगवान राम के नाम पर राजनीति करने से नहीं चूकती है।

सिंहस्थ के लिये दो-दिवसीय आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण 29 फरवरी से

सिंहस्थ के लिये दो-दिवसीय आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण 29 फरवरी से

अमेरिका के आपदा विशेषज्ञ देंगे प्रशिक्षण

उज्जैन में 22 अप्रैल से 21 मई तक होने वाले सिंहस्थ के लिये आपदा और भीड़ प्रबंधन का दो-दिवसीय प्रशिक्षण 29 फरवरी से प्रारंभ होगा। प्रशिक्षण में पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी के अलावा 500 डॉक्टर और पेरा-मेडिकल स्टॉफ शामिल होगा। प्रशिक्षण नई दिल्ली के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल संस्थान और अमेरिका के अटलांटा स्थित सेंटर फॉर डिसीज संस्थान का संयुक्त दल देगा।

प्रशिक्षण में सिखाया जायेगा कि आपदा की स्थिति में किस प्रकार लीडरशिप की जाना चाहिये। डॉक्टर और पेरा-मेडिकल स्टॉफ को सिंहस्थ मेला क्षेत्र के अस्पतालों में बेहतर उपचार प्रबंधन के तरीके भी बताये जायेंगे। मेला अवधि में अपराधों पर नियंत्रण और अपराधियों से किस तरह निपटा जाये, यह जानकारी भी दी जायेगी।

बेहतर होगी चिकित्सा व्यवस्था

सिंहस्थ-2016 में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चिकित्सा प्रबंधन की सुनियोजित योजना तैयार की गयी है। पूरे मेला क्षेत्र में 24 घंटे चिकित्सा के इंतजाम रहेंगे। इसके लिये 3000 मेडिकल स्टॉफ लगातार कार्य करेगा। विभिन्न स्थितियों से निपटने के लिये 552 डॉक्टर, करीब 650 नर्सिंग-स्टॉफ और 900 पेरा-मेडिकल स्टॉफ तैनात किया जा रहा है। अच्छी चिकित्सा सुविधा देने के लिये 1000 सहायक स्टॉफ भी तैनात रहेगा। सिंहस्थ में 4 जोन स्तर में 20-20 बिस्तरीय अस्पताल बनाये जायेंगे। प्रत्येक अस्पताल में 47 व्यक्ति का स्टॉफ होगा। सेक्टर-स्तर पर 23 अस्पताल बनाये जायेंगे, जिनमें 6-6 बिस्तर की सुविधा होगी। प्रत्येक अस्पताल में 31 व्यक्ति का प्रशिक्षित स्टॉफ रहेगा। उज्जैन में बनाये जा रहे प्रत्येक सेटेलाइट टाउन में भी 6 बिस्तरीय अस्पताल की सुविधा रहेगी।

श्रद्धालुओं को जरूरत पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करवाने के लिये 1000 होमगार्ड को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मेला क्षेत्र के अस्पताल तथा शासकीय-अशासकीय अस्पतालों में 1800 बिस्तर का इंतजाम रहेगा। इनमें 200 बेड अशासकीय अस्पताल के हैं, जो सिंहस्थ के दौरान रिजर्व रखे जायेंगे। इनके अलावा 218 अतिरिक्त रूप से अस्थायी बेड भी उपलब्ध रहेंगे। सिंहस्थ में आपातकालीन ह्रदय रोग चिकित्सा व्यवस्था के तहत 3 कॉर्डियक एम्बूलेंस की व्यवस्था भी रहेगी। इंदौर के अरविंदो मेडिकल कॉलेज, अपोलो और मेदांता हॉस्पिटल ने भी एक-एक कॉर्डियक एम्बूलेंस सिंहस्थ के लिये उपलब्ध करवाने पर सहमति दी है।

सिंहस्थ की सफलता के लिए मुनिश्री के सानिध्य में होगी 1008 शांतिधारा-चढ़ेगा 16 फीट का नारियल

सिंहस्थ की सफलता के लिए मुनिश्री के सानिध्य में होगी 1008 शांतिधारा-चढ़ेगा 16 फीट का नारियल

उज्जैन। तपोभूमि प्रणेता मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज का 24 जनवरी को उज्जैन में आगमन होगा। महावीर स्वामी के इतिहास को सहेजकर महावीर तपोभूमि का निर्माण कराने वाले मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज के सानिध्य में फिर एक ऐतिहासिक आयोजन 7 फरवरी को आयोजित किया जाएगा। जिसमें 1008 शांतिधाराओं के साथ 16 फीट का नारियल श्री महावीर स्वामी को चढ़ाया जाएगा। यह कार्यक्रम विश्व में कीर्तिमान स्थापित करेगा। उल्लेखनीय है कि सिंहस्थ महापर्व उज्जैन में होने जा रहा है जिसकी सफलता के लिए मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज 1008 श्रध्दालुओं द्वारा एक साथ शांतिधारा कराएंगे। इतिहास में पहली बार होने वाला यह महापर्व 7 फरवरी को होगा। इस कार्यक्रम को देखने के लिए देशभर से ही नहीं अपितु विश्वभर से लोग उज्जैन आ रहे हैं। मीडिया प्रभारी सचिन कासलीवाल के अनुसार पिछले दिनों महाराजश्री को उज्जैन में आने के लिए श्रीफल सामाजिक संसद अध्यक्ष एवं तपोभूमि अध्यक्ष अशोकजैन चायवाला, महेश जैन, पवन बोहरा, धर्मेन्द्र सेठी, राजेन्द्र लुहाडि़या, सुनील जैन, ओम जैन, फूलचंद छाबड़ा, देवेन्द्र जैन, सुधीर चांदवाड़, उज्जैन के सभी दिगंबर जैन मंदिरों के अध्यक्ष एवं ट्रस्टीगण, सभी महिला मंडलों के साथ-साथ प्रज्ञा कलामंच ने श्रीफल भेंट किया था। मुनिश्री की बुधवार की आहारचर्या आगर में हुई, आज पाट में होगी। 24 जनवरी को मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज पैदल विहार करते हुए उज्जैन पहुंचेंगे जहां उनकी भव्य अगवानी होगी।

सिंहस्थ प्रश्न बैंक में जुड़े 12 हजार प्रश्न और उत्तर

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उज्जैन में 21 अप्रैल से 20 मई तक होने वाले सिंहस्थ के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये प्रश्न-उत्तर बैंक तैयार किया जा रहा है। अब तक सिंहस्थ से जुड़े लगभग 12 हजार प्रश्न और उनके उत्तर इस बैंक से जोड़े जा चुके हैं। उम्मीद है कि प्रश्न बैंक में करीब 30 हजार प्रश्न और उनके उत्तर जुड़ सकेंगे।

प्रश्न बैंक में सिंहस्थ में कार्य कर रहे सभी सरकारी विभागों से जुड़े संभावित प्रश्न और उनके उत्तर संकलित किये जा रहे हैं। प्रश्‍न बैंक के जरिये श्रद्धालुओं को रेलवे,बस, धर्मशालाएँ, दर्शनीय स्थल, प्रमुख स्नान की तिथियाँ, व्यवस्था में लगे अधिकारियों के फोन नम्बर, स्वास्थ्य और सफाई संबंधी सुविधाओं की जानकारी कॉल-सेन्टर से मिल सकेगी। यह जानकारी मोबाइल एप और सिंहस्थ वेबसाइट पर भी उपलब्ध रहेगी।

त्रिवेणी जोन में तेजी से हो रहे है मूलभूत सुविधाओं के कार्य

सिंहस्थ मेला क्षेत्र में त्रिवेणी जोन में मूलभूत सुविधाओं और सौन्दर्यीकरण के काम तेजी से किये जा रहे हैं। उज्जैन विकास प्राधिकरण द्वारा पेविंग ब्लॉक लगाने, घाटों पर पेंटिंग, लाइटिंग,रेलिंग, ओटलों की मरम्मत के कार्य प्रमुख रूप से किये जा रहे हैं। त्रिवेणी सेक्शन में शनि मंदिर और चारों घाट पर विकास के कार्य 50 प्रतिशत किये जा चुके हैं। इन जगहों पर विद्युत खम्बों को पेंट किया जा रहा है। पीएचई द्वारा त्रिवेणी जोन में 50 हजार लीटर क्षमता की उच्च-स्तरीय टंकी बनाई गई है। इसे गऊ घाट प्लांट से जोड़ा गया है। शनि मंदिर परिक्षेत्र में 5000 लीटर क्षमता के 5 सिस्टर्न बनाये गये हैं। इन्हें टंकी के माध्यम से भरा जायेगा। जल संसाधन द्वारा भी ‍िक्षप्रा के घाटों पर विकास के काम किये जा रहे हैं।

उज्जैन नगर निगम द्वारा मेला क्षेत्र में विजिटर्स फेसिलिटी सेन्टर का निर्माण, शहरी क्षेत्र में टायलेट सुधार, पुष्कर सागर और मेला क्षेत्र में 5 हजार अतिरिक्त अस्थाई शौचालय का निर्माण करवाया जा रहा है। नगर निगम के 7 सिविल कार्य पूरे हो गये हैं और 12 प्रगति पर हैं। सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस द्वारा करीब 91 किलोमीटर में बेरिकेटिंग की जायेगी। इस पर लगभग 12 करोड़ की राशि खर्च होगी।

सिंहस्थ मेला क्षेत्र में 1748 भू-खण्ड आवंटित
सिंहस्थ मेला क्षेत्र में अब तक साधु-संत और विभिन्न संस्थाओं को 1748 भू-खण्ड आवंटित किये जा चुके हैं। काल-भैरव क्षेत्र में 131, मंगलनाथ क्षेत्र में 741, दत्त अखाड़ा में 771 और महाकाल क्षेत्र में 105 भू-खण्ड आवंटित किये जा चुके हैं।

उज्जैन की भौगोलिक स्थिति अनूठी

उज्जैन की भौगोलिक स्थिति अनूठी

सूर्य के ठीक नीचे की स्थिति उज्जयिनी के अलावा सॅसार में किसी नगर की नहीं

प्राचीन भारत की समय-गणना का केन्द्र-बिन्दु होने के कारण ही काल के आराध्य महाकाल हैं, जो भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। हिन्दुस्तान की ह्रदय-स्थली उज्जयिनी की भौगोलिक स्थिति अनूठी है। खगोल-शास्त्रियों की मान्यता है कि उज्जैन नगर पृथ्वी और आकाश के मध्य में स्थित है। भूतभावन महाकाल को कालजयी मानकर ही उन्हें काल का देवता माना जाता है। काल-गणना के लिये मध्यवर्ती स्थान होने के कारण इस नगरी का प्राकृतिक, वैज्ञानिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ जाता है। इन सब कारणों से ही यह नगरी सदैव काल-गणना और काल-गणना शास्त्र के लिये उपयोगी रही है। इसलिये इसे भारत का ग्रीनविच माना जाता है। 

यह प्राचीन ग्रीनविच उज्जैन देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फीट ऊँचाई पर बसी है। इसलिये इसे काल-गणना का केन्द्र-बिन्दु कहा जाता है। यही कारण है कि प्राचीन-काल से यह नगरी ज्योतिष-शास्त्र का प्रमुख केन्द्र रही है। इसके प्रमाण में राजा जय सिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को काल-गणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है। भौगोलिक गणना के अनुसार प्राचीन आचार्यों ने उज्जैन को शून्य रेखांश पर माना है। कर्क रेखा भी यहीं से जाती है। इस प्रकार कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को उज्जैन में काटती है। यह भी माना जाता है कि संभवत: धार्मिक दृष्टि से श्री महाकालेश्वर का स्थान ही भूमध्य रेखा और कर्क रेखा के मिलन स्थल पर हो, वहीं नाभि-स्थल होने से पृथ्वी के मध्य में स्थित है। इन्हीं विशिष्ट भौगोलिक स्थितियों के कारण काल-गणना, पंचांग का निर्माण और साधना की सिद्धि के लिये उज्जैन नगर को महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार जब उत्तर ध्रुव की स्थिति पर 21 मार्च से प्राय: 6 मास का दिन होने लगता है, तब 6 मास के 3 माह व्यतीत होने पर सूर्य दक्षिण क्षितिज से बहुत दूर हो जाता है। इस समय सूर्य ठीक उज्जैन के मस्तक पर रहता है। उज्जैन का अक्षांश एवं सूर्य की परम क्रांति दोनों ही 24 अक्षांश पर मानी गयी है। इसलिये सूर्य के ठीक नीचे की स्थिति उज्जयिनी के अलावा विश्व के किसी नगर की नहीं है।

वराह पुराण में उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि देश (मणिपूर चक्र) और महाकालेश्वर को इसका अधिष्ठाता कहा गया है। महाकाल की यह कालजयी नगरी विश्व की नाभि-स्थली है। जिस प्रकार माँ की कोख में नाभि से जुड़ा बच्चा जीवन के तत्वों का पोषण करता है, इसी प्रकार काल, ज्योतिष, धर्म और आध्यात्म के मूल्यों का पोषण भी इसी नाभि-स्थली से होता रहा है। उज्जयिनी भारत के प्राचीनतम शिक्षा का केन्द्र रहा है। भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा, उनका संवर्धन एवं उसको अक्षुण्ण बनाये रखने का कार्य यहीं पर हुआ है। सत-युग, त्रेता-युग, द्वापर-युग और कल-युग में इस नगरी का महत्व प्राचीन शास्त्रों में बतलाया गया है।

उज्जयिनी से काल की सही गणना और ज्ञान प्राप्त किया जाता रहा है। इस नगरी में महाकाल की स्थापना का रहस्य यही है तथा काल-गणना का यही मध्य-बिन्दु है। मंगल गृह की उत्पत्ति का स्थान भी उज्जयिनी को माना गया है। यहाँ पर ऐतिहासिक नव-ग्रह मंदिर और वेधशाला की स्थापना से काल-गणना का मध्य-बिन्दु होने के प्रमाण मिलते हैं। इस संदर्भ में यदि उज्जयिनी में लगातार अनुसंधान, प्रयोग और सर्वेक्षण किये जायें, तो ब्रह्माण्ड के अनेक अनछुए पक्षों को भी जाना जा सकता है।